नवकुसुम

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गुरुवार, 25 जून 2015

मन .......

ये  मन  तु  उदास  मत  हो |

सुख  -दुःख  तो  आनी  हैं ,
कष्ट  आएंगे  उसे सहना होगा |
फिर से  तुम्हे  सम्भलना होगा ,
ये  मन  तु  उदास  मत  हो |

सूरज  फिर  से  उदय  होगा ,
कल  नया  सवेरा  लाएगा |
अपनी  रौशनी से जग को जगमगाएगा ,
ये  मन  तु  उदास  मत  हो |

तुम फिर से उस प्यार को पाओगे ,
जो प्यार को तुमने खोया है |
खोया हुआ दिन फिर से वापस आएंगे ,
ये  मन  तु  उदास  मत  हो |

तुम्हारे  इस  निराशा   पर ,
आशाओ  के फूल  खिलेंगे |
फिर से  तुम्हारी  जिंदगी में ,
नयी -नयी खुशिया बहार आएंगे |
ये  मन  तु  उदास  मत  हो |

.........निवेदिता  चतुर्वेदी 

गुरुवार, 14 मई 2015

यादें

आज आपकी यादों में आँखें भर आई .............
क्या कहुँ क्या सुनु कुछ समझ न आयीं |
बीतें हुए पलों को याद करके  उदासी छायीं |
जहाँ भी मैं रहती वहाँ अकेलापन महशुस करती |
आज आपकी यादों ......................

याद आती है वो पलें जब साथ रहा करती थी |
साथ ही साथ हँसा, बोला ,खेला,करती थी |
कभी भी आपसे बिछड़ने की आशा नहीं रखी थी |
आज आपकी यादों .................

परेशानियां भी आती तो आपको ही बताती |
तभी मेरा मन हल्का हो जाती |
आप भी मेरे हर सुख -दुःख में साथ निभाती |
आज आपकी यादों ...............

आज किसे सुनाउ मैं अपनी बातें |
जो बातें आपको सुनाया करती थी |
आपभी प्यारी -प्यारी बातों से भरमाया करती थी |
आज आपकी यादों ...............

वो दिन भी आज याद आ गए |
जब मैं ऑफिस से घर आया करती |
आपने ही तो मेरे लिए नास्ता तैयार रखती |
आज आपकी यादों .................

काश ! वो दिन फिर से आ जाएँ |
हम और आप साथ-साथ हो जाएँ |
फिर से एक जूट हो कर सबको हंसाएं |
आज आपकी यादों ..........
                                 निवेदिता चतुर्वेदी 



रविवार, 12 अप्रैल 2015

अत्याचार

लड़कियों पर क्यों होते अत्याचार , मिलती है प्रताड़ना हर कदम पर , गलती चाहे जिसकी भी हो पर , सबकुछ सहन उसे ही करना पड़ता | यह दुनिया भी अजीब सी हो गयी , सब देखते हुए अनजान बन गयी , उसकी भावनाओ को कोई नहीं समझता , लगता है सबकी मर चुकी है भावना | सुनते नहीं आवाज कोई उसकी , वो किसे सुनाये दिल-दर्द अपनी , सारे कष्टो को अपने दिल में समेटे , बड़ी आकांक्षाओ को अंदर ही दबाये | अंदर ही अंदर घूंट- घूंट कर जीती , आखिर कौन है सुनने वाले उसकी , जो भी बने हुए थे उसके अपने , वहीं ठहरने लगे है गुनहगार उसे | ऐसी परिस्थिति क्यों बनी है उसकी , मैं भी कुछ समझ नहीं पाती |.. .....निवेदिता चतुर्वेदी ..

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015

तुम मेरे हो और मेरे ही रहोगे।


तुम मेरे हो और मेरे ही रहोगे। हमें छोड़ कर आखिर कहाँ जाओगे। मैं आश लगाये बैठीं हूँ, कब मेरे सपने पुरा करोगे। तुम मेरे हो और मेरे ही रहोगे। हमें ये भी पता है,तुम पुरा करेंगे। पर कुछ परेशानियां तो दोगे ही। परेशानियां ही सही पर पुरा तो करोगे। तुम मेरे हो और मेरे ही रहोगे। हमे तुम पर पुरा यकीन भी है। कि तुम मेरा साथ कभी नहीं छोड़ोगे। यदि छोड़ भी दिया तो क्या? बुलाने पर तो आओगे। तुम मेरे हो और मेरे ही रहोगे। ------निवेदिता चतुर्वेदी

प्रसन्नता का रहस्य।


प्रसन्नता मनुष्य के सौभाग्य का चिन्ह है।प्रसन्नता एक अध्यात्मिक वृत्ति है,एक दैविय चेतना है सत्य तो यह है कि प्रमुदित मन वाले व्यक्ति के पास लोग अपना दुख दर्द भूल जाते हैं।जीवन में कुछ न होने पर भी यदि किसी का मन आनंदित है तो वह सबसे सम्पन्न मनुष्य है।आन्तरिक प्रसन्नता के लिए किन्हीं बाहरी साधन की आवश्यकता नहीं होती,क्यों कि प्रसन्नचित्त एक झोपड़ी में भी सुखी रह सकता है।प्रसन्न मन में ही अपनी आत्मा को देख सकता है।पहचान सकता है।सत्य तो यह है कि जो विकारो से जितना दूर रहेगा। वह उतना ही प्रसन्नचित्त रहेगा।शुद्ध हृदय वाली आत्मा सदैव ईश्वर के समीप रह सकती है।हर कोई चाहता है कि उसका भविष्य उज्ज्वल बने सदा प्रसन्नता उसके साथ हो।इच्छा की पूर्ति तनिक भी असम्भव नहीं है,यदि हम अपने विचारों पर नियंत्रण करना सीख ले,एवं कुविचारों को हटाना ।सद्विचारों में एक आकर्षण शक्ति होती है।जो सदैव हमें प्रसन्न ही नहीं बल्कि परिस्थितियों को भी हमारा दास बना देती है। ------------निवेदिता चतुर्वेदी

शनिवार, 4 अप्रैल 2015

नारी "

बन्द करो ये अत्याचार, नारी करने लगी पुकार। बन्द करो ये अत्याचार। कब तक होगा ये परहेज़, कोई न लेगा तिलक दहेज। बेटी वाले घर में रोये, बेटा वाले सुख से सोये। कब तक बेटी रहे लाचार। बन्द करो ये अत्याचार। आज भी जन्मी कितनी गीता, राधा हो या मीरा सीता । पर पुरूष अधिकार जमाते, रावण दुशासन ले अवतार। नारियों पर कहर बरसाया, बन्द करो ये अत्याचार। आओ बहन इसे सुलझाये, लक्ष्मीबाई रूप अपनाए। अब हम सहेगे न भ्रष्टाचार, हमसे अब न होगी अत्याचार। नारी करने लगी पुकार, बन्द करो ये अत्याचार। -----निवेदिता चतुर्वेदी

रविवार, 29 मार्च 2015

कन्या भ्रूणहत्या

कन्या भ्रूण हत्या एक बड़ा घिनौना अपराध है।यह करके मनुष्य आज और कल दोनों को अंधकार मय बना रहा है।उस अबोध शिशु का क्या अपराध जिसे इस धरा पर पैर रखने से पहले ही मार दिया जा रहा है।आखिर उसने एैसा क्या कर दिया जिससे लोग उसके जान के दुश्मन बन गये।
         उसका यही अपराध था न कि वो लड़की पैदा होने वाली थी सिर्फ़ जुल्म लड़कियो के लिये ही लड़को के लिए नही ये घोर अन्याय ही नहीं घोर पाप हैं।इससे यह साबित होता है कि आज भी हमारे समाज में लड़का-लड़की में भेद भाव देखने को मिल रहा है
लड़कियों को लड़को के समान नहीं मिलता। लड़का- लड़की में भेद -भाव हमारे जीवन मूल्यों में आई खामियों को दर्शाता है।कन्या भ्रूण हत्या को बढावा देने वाले कुछ कारण में दहेज नाम का एक अभी शाप ऐसा है जो कन्या भ्रूण हत्या को और फैलाने सहायक है मँहगाई और गरीबी में कैसे -कैसे इन्सान अपने परिवार का पेट पालते हैं और उसके बाद दहेज की चिंता एक गरीब के लिए दहेज बोझ इतना अधिक होता हैं कि वह चाहकर भी अपनी देवी रूपी को उतना प्यार नहीं दे पाता जितने की वो हकदार होती है ।
          लेकिन यह कन्या विरोधी नजरिया सिर्फ गरीब परिवारों तक सीमित नहीं हैं,अमीर दिखते लोगों में तो ज्यादा पैर पसार चुकी है अगर देखा जाए तो एक बड़ा दोष धार्मिक km मान्यता का भी जो सिर्फ पुत्र को ही पिता या माता को मुखाग्नि देने हक देती है माँ बाप के बाद पुत्र को ही वंश आगे बढ़ाने का काम दिया जाता है।हिन्दू धर्म में लड़कियो को पिता चिता में आग 🔥 लगाने की अनुमति नहीं होती हैं।
          कन्याओं पर बढता अत्याचार समाचारों एक आम हिस्सा हो गया है जितनी लड़किया बलात्कार दहेज और अन्य मानसिक और शारीरिक अत्याचारों से सताई जाती है।उनसे कई सौ गुना ज्यादा तो जन्म लेने से पहले ही मार दी जाती है वाणी और विचार में नारी को देवी का दर्जा देने वाले किन्तु व्यवहार में नारी के प्रति हर स्तर पर घोर भेदभाव बरतने ह उसपर अमानुषिक अत्याचार करने वाले हमारे समाज का यह क्रुरतम रूप है बेटियों को कम आँकने वाले और उनकी हत्या करने वाले जरा अपनी माँ की तरफ देखो यह वही है जिसने तुम जैसों  को जन्म देकर इतना पबड़ा बनाया और आज तुम्हीं उसके अस्तित्व को मिटाने चले हो।
          आज देश के सामने विकट समस्या है लड़कियो का अनुपात लड़को की अपेक्षा कम होता जा रहा है।
                        ------निवेदिता चतुर्वेदी
                                 ०५-०२-२०१५
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दहेज प्रथा

आजकल नारियों पर इतना अत्याचार देखने को मिल रहा है कि कहा नहीं जा सकता।कहीं नारियां दहेज को लेकर झेल रही हैं तो कहीं कुछ और,लेकिन आज मैं विशेष रूप से दहेज़ पर ही लिखने पर मजबूर हूँ।
                सरकार ने दहेज प्रथा को रोकने के लिए कई कनून चलाए।कहा गये वो कानून,वो बसएक दिन के लिए थे जिस दिन लागू की गई।आज इस दहेज की अग्नि में कितनी नारियाँ झुलस रही हैं ।है किसी की नजर,है किसी को पता।
                  पुरातन काल में ऐसा कहा जाता था ह जहां नारी की पुजा होती है वहीं। देव गण भी निवास करते हैं।परन्तु ऐसा जानते हुए भी नारी के साथ अन्याय और शोषण में कमी नहीं आया इसके उत्तर में यह कहा जा सकता है हम पूर्णतः अपनी संस्कृति और सभ्यता का त्याग कर चुके हैं।जिसके चलते हमें नारी के अन्दर विद्यमान गुणों को समझने कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है । है कोई नारी के पीड़ा को समझने वाला जो भी है वो पीड़ा  देने वाला ,समझने वाला नहीं।
               अरे ये कैसे लोग भुल गये कि प्राचीन काल में भी देखा जाए तो हमारे समाज में नारियों की स्थिति पूरूषो से कहीं सुदृढ़  मानी जाती थी।एक ऐसा समय था कि नारी का स्थान पुरूषो इतना ऊंचा और पुज्यनीय था कि पिता के नाम के स्थान पर माता के नाम से ही पहचान कराई जाती थी।ये सभी बातें आज कहाँ विलुप्त हो गई कुछ पता नहीं । आज मैं दहेज लेने वालों से यही कहूंगी कि दहेज़ लेने से पहले एक बार अपनी भारतीय संस्कृति सभ्यता को झाक कर देख लें कि नारियों का क्या महत्व है क्या मान है क्या सम्मान है।
~~~~~~~~~~~~निवेदिता चतुर्वेदी

शुक्रवार, 20 मार्च 2015

मित्रता

मित्रता एक ईश्वरीय देन है,जो दो समान विचारधारा वाले व्यक्तियों के बीच स्वतः स्थापित हो जाती है।जाती,धर्म,रंग,रूप,एवं धन मित्रता के मार्ग में बाधक नहीं होते हैं।अगर ऐसा होता तो कृष्ण और सुदामा,राम और सुग्रीव आदि में मित्रता नहीं होती।मित्रता स्थापित होने के लिये दोनों के बीच खोटा स्वार्थ भी नहीं होना चाहिए।मित्रता तो हृदयों का गठबंधन है।
           इजरायली ने कहा है ---"मित्रता देवी है और मनुष्य के लिए मित्रता से अधिक कुछ नहीं और मनुष्य के लिए बहुमूल्य वरदान है।"
           मित्रता की पहचान आपातकाल में होती है।जो मित्र दु:ख में तन मन और धन से साथ दे वही  सच्चा मित्र है गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं ----"धीरज धर्म मित्र अरू नारी।
                    आपत काल परखिये चारी।।"
एक सच्चा मित्र दूध में मिले पानी की तरह होता है।इसी पर अंग्रेजी में एक प्रसिद्ध कहावत है --
           "As friend in need is a friend indeed."
          इसलिए मित्रता ऐसे मनुष्य से करो जो तुमसे श्रेष्ठ हो।अतएव हमें सदा अच्छे मित्रों की खोज करनी चाहिए,क्यों कि --"सच्चा मित्र मिलना दैवी वरदान है"