नवकुसुम

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रविवार, 12 अप्रैल 2015

अत्याचार

लड़कियों पर क्यों होते अत्याचार , मिलती है प्रताड़ना हर कदम पर , गलती चाहे जिसकी भी हो पर , सबकुछ सहन उसे ही करना पड़ता | यह दुनिया भी अजीब सी हो गयी , सब देखते हुए अनजान बन गयी , उसकी भावनाओ को कोई नहीं समझता , लगता है सबकी मर चुकी है भावना | सुनते नहीं आवाज कोई उसकी , वो किसे सुनाये दिल-दर्द अपनी , सारे कष्टो को अपने दिल में समेटे , बड़ी आकांक्षाओ को अंदर ही दबाये | अंदर ही अंदर घूंट- घूंट कर जीती , आखिर कौन है सुनने वाले उसकी , जो भी बने हुए थे उसके अपने , वहीं ठहरने लगे है गुनहगार उसे | ऐसी परिस्थिति क्यों बनी है उसकी , मैं भी कुछ समझ नहीं पाती |.. .....निवेदिता चतुर्वेदी ..

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015

तुम मेरे हो और मेरे ही रहोगे।


तुम मेरे हो और मेरे ही रहोगे। हमें छोड़ कर आखिर कहाँ जाओगे। मैं आश लगाये बैठीं हूँ, कब मेरे सपने पुरा करोगे। तुम मेरे हो और मेरे ही रहोगे। हमें ये भी पता है,तुम पुरा करेंगे। पर कुछ परेशानियां तो दोगे ही। परेशानियां ही सही पर पुरा तो करोगे। तुम मेरे हो और मेरे ही रहोगे। हमे तुम पर पुरा यकीन भी है। कि तुम मेरा साथ कभी नहीं छोड़ोगे। यदि छोड़ भी दिया तो क्या? बुलाने पर तो आओगे। तुम मेरे हो और मेरे ही रहोगे। ------निवेदिता चतुर्वेदी

प्रसन्नता का रहस्य।


प्रसन्नता मनुष्य के सौभाग्य का चिन्ह है।प्रसन्नता एक अध्यात्मिक वृत्ति है,एक दैविय चेतना है सत्य तो यह है कि प्रमुदित मन वाले व्यक्ति के पास लोग अपना दुख दर्द भूल जाते हैं।जीवन में कुछ न होने पर भी यदि किसी का मन आनंदित है तो वह सबसे सम्पन्न मनुष्य है।आन्तरिक प्रसन्नता के लिए किन्हीं बाहरी साधन की आवश्यकता नहीं होती,क्यों कि प्रसन्नचित्त एक झोपड़ी में भी सुखी रह सकता है।प्रसन्न मन में ही अपनी आत्मा को देख सकता है।पहचान सकता है।सत्य तो यह है कि जो विकारो से जितना दूर रहेगा। वह उतना ही प्रसन्नचित्त रहेगा।शुद्ध हृदय वाली आत्मा सदैव ईश्वर के समीप रह सकती है।हर कोई चाहता है कि उसका भविष्य उज्ज्वल बने सदा प्रसन्नता उसके साथ हो।इच्छा की पूर्ति तनिक भी असम्भव नहीं है,यदि हम अपने विचारों पर नियंत्रण करना सीख ले,एवं कुविचारों को हटाना ।सद्विचारों में एक आकर्षण शक्ति होती है।जो सदैव हमें प्रसन्न ही नहीं बल्कि परिस्थितियों को भी हमारा दास बना देती है। ------------निवेदिता चतुर्वेदी

शनिवार, 4 अप्रैल 2015

नारी "

बन्द करो ये अत्याचार, नारी करने लगी पुकार। बन्द करो ये अत्याचार। कब तक होगा ये परहेज़, कोई न लेगा तिलक दहेज। बेटी वाले घर में रोये, बेटा वाले सुख से सोये। कब तक बेटी रहे लाचार। बन्द करो ये अत्याचार। आज भी जन्मी कितनी गीता, राधा हो या मीरा सीता । पर पुरूष अधिकार जमाते, रावण दुशासन ले अवतार। नारियों पर कहर बरसाया, बन्द करो ये अत्याचार। आओ बहन इसे सुलझाये, लक्ष्मीबाई रूप अपनाए। अब हम सहेगे न भ्रष्टाचार, हमसे अब न होगी अत्याचार। नारी करने लगी पुकार, बन्द करो ये अत्याचार। -----निवेदिता चतुर्वेदी