नवकुसुम

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रविवार, 29 मार्च 2015

दहेज प्रथा

आजकल नारियों पर इतना अत्याचार देखने को मिल रहा है कि कहा नहीं जा सकता।कहीं नारियां दहेज को लेकर झेल रही हैं तो कहीं कुछ और,लेकिन आज मैं विशेष रूप से दहेज़ पर ही लिखने पर मजबूर हूँ।
                सरकार ने दहेज प्रथा को रोकने के लिए कई कनून चलाए।कहा गये वो कानून,वो बसएक दिन के लिए थे जिस दिन लागू की गई।आज इस दहेज की अग्नि में कितनी नारियाँ झुलस रही हैं ।है किसी की नजर,है किसी को पता।
                  पुरातन काल में ऐसा कहा जाता था ह जहां नारी की पुजा होती है वहीं। देव गण भी निवास करते हैं।परन्तु ऐसा जानते हुए भी नारी के साथ अन्याय और शोषण में कमी नहीं आया इसके उत्तर में यह कहा जा सकता है हम पूर्णतः अपनी संस्कृति और सभ्यता का त्याग कर चुके हैं।जिसके चलते हमें नारी के अन्दर विद्यमान गुणों को समझने कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है । है कोई नारी के पीड़ा को समझने वाला जो भी है वो पीड़ा  देने वाला ,समझने वाला नहीं।
               अरे ये कैसे लोग भुल गये कि प्राचीन काल में भी देखा जाए तो हमारे समाज में नारियों की स्थिति पूरूषो से कहीं सुदृढ़  मानी जाती थी।एक ऐसा समय था कि नारी का स्थान पुरूषो इतना ऊंचा और पुज्यनीय था कि पिता के नाम के स्थान पर माता के नाम से ही पहचान कराई जाती थी।ये सभी बातें आज कहाँ विलुप्त हो गई कुछ पता नहीं । आज मैं दहेज लेने वालों से यही कहूंगी कि दहेज़ लेने से पहले एक बार अपनी भारतीय संस्कृति सभ्यता को झाक कर देख लें कि नारियों का क्या महत्व है क्या मान है क्या सम्मान है।
~~~~~~~~~~~~निवेदिता चतुर्वेदी

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